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वमन का अर्थ है उल्टी के माध्यम से शरीर से कफ दोष और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से कफ दोष से संबंधित विकारों को दूर करने में उपयोगी है। वमन के लिए रोगी को पहले घी या तेल से स्नेहन (Oleation) और स्वेदन (Sudation) द्वारा तैयार किया जाता है। इसके बाद, विशेष औषधियों जैसे मधुक (मुलेठी) या अन्य वमन प्रेरक दवाओं का सेवन कराया जाता है, जिससे उल्टी के माध्यम से शरीर में जमा विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। वमन प्रक्रिया अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, सर्दी-खांसी, और त्वचा विकारों जैसे सोरायसिस और एक्जिमा में अत्यंत प्रभावी है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से वसंत ऋतु में की जाती है, जब कफ दोष अधिक सक्रिय होता है।
- प्रक्रिया:
रोगी को पहले स्नेहन (तेल चिकित्सा) और स्वेदन (स्टीम चिकित्सा) द्वारा तैयार किया जाता है। इसके बाद विशेष औषधियों (जैसे मधुक या वच) का सेवन कराया जाता है, जिससे उल्टी प्रेरित होती है। यह प्रक्रिया शरीर में जमा कफ दोष और टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करती है। - लाभ:
- श्वसन तंत्र के रोगों में लाभकारी।
- पाचन तंत्र को शुद्ध करता है।
- त्वचा विकारों में उपयोगी।
विरेचन पित्त दोष को संतुलित करने की एक प्रक्रिया है, जिसमें औषधीय जुलाब (Laxatives) के माध्यम से मल मार्ग से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। इस प्रक्रिया के लिए रोगी को पहले स्नेहन और स्वेदन द्वारा तैयार किया जाता है। विरेचन से पाचन तंत्र की गहरी शुद्धि होती है और यह एसिडिटी, पित्त विकार, अपच, त्वचा रोग (जैसे मुंहासे, एक्जिमा), और जिगर से संबंधित रोगों में सहायक है। यह प्रक्रिया शरीर की जठराग्नि (पाचन शक्ति) को भी मजबूत करती है और चयापचय (Metabolism) को सुधारती है।
- प्रक्रिया:
रोगी को स्नेहन और स्वेदन के माध्यम से तैयार किया जाता है। इसके बाद, औषधीय जुलाब, जैसे त्रिवृत या हरितकी, का उपयोग किया जाता है। यह मलाशय से पित्त दोष और विषाक्त पदार्थों को निकालता है। - लाभ:
- अपच, एसिडिटी, और त्वचा रोगों में सहायक।
- जिगर और पित्ताशय के रोगों में लाभकारी।
- चयापचय को सुधारता है।
आयुर्वेद में स्नेहन (Oleation) का अर्थ है शरीर में तेल या घृत (घी) का उपयोग करके उसे आंतरिक और बाहरी रूप से चिकनाई प्रदान करना। यह प्रक्रिया पंचकर्म चिकित्सा के दौरान शरीर को शुद्ध करने के लिए आवश्यक तैयारी (पूर्व कर्म) का हिस्सा है। स्नेहन का उद्देश्य शरीर में जमा दोषों (वात, पित्त, कफ) को ढीला करना और उन्हें उत्सर्जन के लिए तैयार करना है।
स्नेहन के प्रकार
1. आभ्यंतर स्नेहन (Internal Oleation)
इसमें औषधीय घृत या तेल का सेवन कराया जाता है। यह आंतरिक अंगों को चिकनाई प्रदान करता है और विषाक्त पदार्थों को मल और मूत्र के माध्यम से बाहर निकालने में मदद करता है।
- उपयोग की जाने वाली औषधियाँ:
- त्रिफला घृत
- पंचतिक्त घृत
- महा तिक्त घृत
- कांचनार घृत
2. बाह्य स्नेहन (External Oleation)
इसमें शरीर पर औषधीय तेलों की मालिश (अभ्यंग) की जाती है। यह शरीर के ऊतकों को पोषण देता है, त्वचा को चिकना बनाता है और मांसपेशियों को आराम प्रदान करता है।
- उपयोग की जाने वाली औषधियाँ:
- तिल का तेल
- नारियल का तेल
- महामाष तेल
- कुमकुमादि तेल
आयुर्वेद में स्वेदन (Swedana) का अर्थ है शरीर को गर्मी देकर पसीना निकालना। यह प्रक्रिया शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने के लिए उपयोग की जाती है। स्वेदन पंचकर्म चिकित्सा के पूर्व कर्म (Pre-Procedure) का एक अभिन्न हिस्सा है, जो स्नेहन के बाद किया जाता है। यह मांसपेशियों को आराम प्रदान करता है, शरीर के ऊतकों को खोलता है और शुद्धि प्रक्रियाओं को प्रभावी बनाता है।
स्वेदन के प्रकार
1. सग्नि स्वेदन (Saagni Swedana)
यह स्वेदन का वह रूप है जिसमें गर्मी प्रदान करने के लिए अग्नि (आग) या भौतिक माध्यमों का उपयोग किया जाता है।
- उदाहरण: पिंडा स्वेद, नाडी स्वेद, बाष्प स्वेद।
2. निर्ग्नि स्वेदन (Niragni Swedana)
इसमें शरीर को बिना आग के गर्म किया जाता है। इसमें तेल मालिश (अभ्यंग) या प्राकृतिक गर्मी से उत्पन्न पसीना शामिल है।
- उदाहरण: व्यायाम, गर्म रेत, या सौर ऊर्जा।
3. स्थूल स्वेदन (Sthula Swedana)
पूरे शरीर पर गर्मी देने की प्रक्रिया।
4. संग्रह स्वेदन (Sangraha Swedana)
शरीर के केवल एक भाग पर गर्मी देने की प्रक्रिया।
रक्तमोक्षण का उद्देश्य दूषित रक्त को शरीर से बाहर निकालकर रक्त की शुद्धि करना है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से पित्त दोष और रक्त से संबंधित विकारों के उपचार में उपयोगी है। रक्तमोक्षण को जोंक (Leech Therapy) या सिरिंज के माध्यम से किया जाता है। यह त्वचा रोग (सोरायसिस, एक्जिमा, फोड़े-फुंसी), उच्च रक्तचाप, और अन्य रक्त संबंधी विकारों में अत्यंत प्रभावी है। यह प्रक्रिया रक्त को शुद्ध करके शरीर में स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण को प्रोत्साहित करती है।
- प्रक्रिया:
रक्तमोक्षण जोंक (Leech Therapy) या सिरिंज के माध्यम से किया जाता है। - लाभ:
- त्वचा रोग (सोरायसिस, एक्जिमा, फोड़े-फुंसी) में लाभकारी।
- उच्च रक्तचाप और विषाक्त रक्त विकारों को ठीक करता है।
- रक्त परिसंचरण को सुधारता है।